डेंगू बुखार का सीजन शुरू होने से पहले ही बरतें सावधानी, आमतौर पर दिन में काटता है डेंगू का मच्छर एडीज, जागरूक रहकर खुद को रखें सुरक्षित
खुले और साफ पानी में पनपता है मच्छर, जुलाई से शुरू होकर नवंबर तक रहता है डेंगू बुखार के सीजन का असर
देहरादून। डेंगू मच्छर वर्षा ऋतु के दौरान बहुतायत से पाये जाते हैं। यह मच्छर प्रायः घरों स्कूलों और अन्य भवनों में तथा इनके आस-पास एकत्रित खुले एवं साफ पानी में अण्डे देते हैं। इनके शरीर पर सफेद और काली पट्टी होती है, इसलिए इनको टाइगर (चीता मच्छर) भी कहते हैं। यह मच्छर निडर होता है और ज्यादातर दिन के समय ही काटता है। डेंगू एक विषाणु से होने वाली बीमारी है ,जो एडीज एजिप्टी नामक संक्रमित मादा मच्छर के काटने से फैलती है। डेंगू एक तरह का वायरल बुखार है। आमतौर पर डेंगू बुखार का सीजन जुलाई से शुरू होकर नवम्बर तक रहता है। नवंबर में जब तापमान में गिरावट आनी शुरू होती है और सर्दी का सीजन शुरू होने की ओर होता है तब डेंगू का असर धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। उत्तराखंड में राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से हर साल डेंगू से बचाव और उपचार के लिए पर्याप्त मात्रा में जन जागरण अभियान चलाया जाता है और लोगों को इस बारे में सर्तक भी किया जाता है कि कैसे डेंगू से बचा जाए। डेंगू का सीजन डेंगू का सीजन शुरू होने से पहले ही स्वास्थ्य विभाग ने अपनी तैयारी इस बुखार से निपटने के लिए शुरू कर दी है। इस बारे में स्वास्थ्य सचिव की ओर से गाइडलाइन भी जारी कर दी गई है।
डेंगू रोग की रोकथाम के लिए जन सहभागिता बेहद जरूरी
देहरादून । स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सुझाव पर स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू व चिकनगुनिया मरीजों के उपचार व रोकथाम के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। स्वास्थ्य सचिव डॉ आर राजेश कुमार का कहना है कि विगत वर्षों से डेंगू व चिकनगुनिया रोग राज्य में एक प्रमुख जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में परिलक्षित हो रहा है। डेंगू एवं चिकनगुनिया रोग का वेक्टर एडिज मच्छर है। जुलाई से नवम्बर माह तक का समय डेंगू वायरस के संक्रमण के लिये अनुकूल होता है। डेंगू एवं चिकनगुनिया रोग एक मच्छर जनित रोग है जो कि कूलर, फूलदान, गमले, खुली पानी की टंकी, पुराने टायर, एकत्रित कबाड, इत्यादि में जमा पानी में पैदा होते हैं। डेंगू रोग की रोकथाम के लिए जन सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है। स्वास्थ्य सचिव डॉ आर राजेश कुमार ने कहा कि डेंगू एवं चिकनगुनिया रोग की समुचित रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए अन्य समस्त विभागों की भी महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। समस्त विभागों द्वारा डेंगू रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियां समयान्तर्गत की जायें। डेंगू मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए की जाने वाली समस्त गतिविधियां समस्त विभाग निरन्तर करते रहें ताकि डेंगू के मच्छर को पनपने से रोका जा सकें और इसकी सूचना जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा निरन्तर प्राप्त की जाए। स्वास्थ्य सचिव डॉ आर राजेश कुमार ने कहा डेंगू एवं चिकनगुनिया रोग पर रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए ब्लाक वार माइक्रो प्लान बनाकर कार्यवाहिया करना सुनिश्चित करे व यह माइक्रोप्लान राज्य एनवीबीडीसीपी यूनिट को प्रेषित किये जायें। नगर निगमों द्वारा स्वच्छता अभियान चलाया जाये ताकि डेंगू रोग के मच्छरों को पनपने से रोका जा सके।
तीन प्रकार की अवस्थाओं से पीड़ित हो सकता है डेंगू बुखार का रोगी
1. साधारण डेंगू- इसके मरीज का 2 से 7 दिवस तक तेज बुखार चढता है एवं इसके साथ निम्न में से दो या अधिक लक्षण भी साथ में होते हैं।
अचानक तेज बुखार।
सिर में आगे की और तेज दर्द।
आंखों के पीछे दर्द और आंखों के हिलने से दर्द में और तेजी।
मांसपेशियों (बदन) व जोडों में दर्द।
स्वाद का पता न चलना व भूख न लगना।
छाती और ऊपरी अंगो पर खसरे जैसे दानें।
चक्कर आना।
जी घबराना उल्टी आना।
शरीर पर खून के चकते एवं खून की सफेद कोशिकाओं की कमी।
बच्चों में डेंगू बुखार के लक्षण बडों की तुलना में हल्के होते हैं।
2. रक्त स्त्राव वाला डेंगू (डेंगू हमरेजिक बुखार)
खून बहने वाले डेंगू बुखार के लक्षण और आघात रक्त स्त्राव वाले डेंगू में पाये जाने वाले लक्षणों के अतिरिक्त कई लक्षण पाये जाते हैं।
शरीर की चमडी पीली तथा ठन्डी पड जाना।
नाक, मुंह और मसूडों से खून बहना।
प्लेटलेट कोशिकाओं की संख्या 1,00,000 या इससें कम हो जाना।
फेंफडों एवं पेट में पानी इकट्ठा हो जाना।
चमडी में घाव पड जाना।
बैचेनी रहना व लगातार कराहना।
प्यास ज्यादा लगना (गला सूख जाना)।
खून वाली या बिना खून वाली उल्टी आना।
सांस लेने में तकलीफ होना।
3. डेंगू शॉक सिन्ड्रोम
मरीज में परिसंचारी खराबी के लक्षण
नब्ज का कमजोर होना व तेजी से चलना।
रक्तचाप का कम हो जाना व त्वचा का ठ्न्डा पड जाना।
मरीज को बहुत अधिक बेचैनी महसुस करना।
पेट में तेज व लगातार दर्द।
प्रारम्भिक बुखार की स्थिति
मरीज के खून की सीरोलोजिकल एवं वायलोजिकल परीक्षण केवल रोग को सुनिश्चित करती है तथा इनका होना या ना होना मरीज के उपचार में कोई प्रभाव नहीं डालता, क्योंकि डेंगू एक तरह का वायरल बुखार है, इसके लिये कोई खास दवा या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।मरीज को आराम की सलाह दें।
भूख के अनुसार पर्याप्त मात्रा में भोजन दिया जावें।
साधारणतया डेंगू बुखार के मरीज को ठीक होने के 2 दिवस उपरान्त तक जटिलताऐं देखी गई है। प्रत्येक डेंगू बुखार के रोगी के बुखार ठीक होने के दो दिन के बाद तक निगरानी रखी जावें डेंग्यू बुखार से ठीक होने पर मरीज एवं उसके परिजनों का निम्न लक्षणों के उभरने पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी जाए।
डेंगू बुखार से बचाव के उपाय:-
छोटे डिब्बो व ऐसे स्थानो से पानी निकाले जहॉं पानी बराबर भरा रहता है।
कूलरों का पानी सप्ताह में एक बार अवश्य बदले।
घर में कीट नाशक दवायें छिडके।
बच्चों को ऐसे कपडे पहनाये जिससे उनके हाथ पांव पूरी तरह से ढके रहे।
सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
मच्छर भगाने वाली दवाईयों/ वस्तुओं का प्रयोग करें।
टंकियों तथा बर्तनों को ढककर रखें।
सरकार के स्तर पर किये जाने वाले कीटनाशक छिडकाव में सहयोग करें।
आवश्यकता होने पर जले हुए तेल या मिट्टी के तेल को नालियों में तथा इक्कट्ठे हुये पानी पर डाले।
रोगी को उपचार के लिए फौरन निकट के अस्पताल व स्वास्थ्य केन्द्र में ले जाएं।
( यह एक सामान्य जानकारी है, कोई भी लक्षण होने पर चिकित्सक की सलाह जरूर लें)